Kavita In Hindi,एक भी आँसू न कर बेकार,कविता इन हिंदी
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कविता से मनुष्य-भाव की रक्षा होती है। सृष्टि के पदार्थ या व्यापार-विशेष को कविता इस तरह व्यक्त करती है मानो वे पदार्थ या व्यापार-विशेष नेत्रों के सामने नाचने लगते हैं। वे मूर्तिमान दिखाई देने लगते हैं। उनकी उत्तमता या अनुत्तमता का विवेचन करने में बुद्धि से काम लेने की जरूरत नहीं पड़ती। कविता की प्रेरणा से मनोवेगों के प्रवाह जोर से बहने लगते हैं। तात्पर्य यह कि कविता मनोवेगों को उत्तेजित करने का एक उत्तम साधन है। यदि क्रोध, करूणा, दया, प्रेम आदि मनोभाव मनुष्य के अन्तःकरण से निकल जाएँ तो वह कुछ भी नहीं कर सकता। कविता हमारे मनोभावों को उच्छवासित करके हमारे जीवन में एक नया जीव डाल देती है। हम सृष्टि के सौन्दर्य को देखकर मोहित होने लगते हैं। कोई अनुचित या निष्ठुर काम हमें असह्य होने लगता है। हमें जान पड़ता है कि हमारा जीवन कई गुना अधिक होकर समस्त संसार में व्याप्त हो गया है।
रामावतार त्यागी (Ram Avtar Tyagi)
kavita in hindi
एक भी आँसू न कर बेकार
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है
यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है
और जिस के पास देने को न कुछ भी
एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है
कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
जाने देवता को कौनसा भा जाय!
चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ
पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं
हर छलकते अश्रु को कर प्यार
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!
व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
काम अपने पाँव ही आते सफर में
वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा
जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में
हर लहर का कर प्रणय स्वीकार
जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!
ek bhee aansoo na kar bekaar
jaane kab samandar maangane aa jae!
paas pyaase ke kuaan aata nahin hai
yah kahaavat hai, amaravaanee nahin hai
aur jis ke paas dene ko na kuchh bhee
ek bhee aisa yahaan praanee nahin hai
kar svayan har geet ka shrrngaar
jaane devata ko kaunasa bha jaay!
chot khaakar tootate hain sirph darpan
kintu aakrtiyaan kabhee tootee nahin hain
aadamee se rooth jaata hai sabhee kuchh
par samasyaayen kabhee roothee nahin hain
har chhalakate ashru ko kar pyaar
jaane aatma ko kaun sa nahala jaay!
vyarth hai karana khushaamad raaston kee
kaam apane paanv hee aate saphar mein
vah na eeshvar ke uthae bhee uthega
jo svayan gir jaay apanee hee nazar mein
har lahar ka kar pranay sveekaar
jaane kaun tat ke paas pahuncha jae!
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